छोटे छोटे सवाल –२२
और इतना कहकर लालाजी अपनी बात का असर देखने की कोशिश करने लगे उन दोनों पर। पता नहीं लालाजी की बात का असर था कि उन दोनों की अपनी मज़बूरी का-मगर दोनों ही सहमति की मुद्रा में दिखाई दे रहे थे। तभी मास्टर उत्तमचन्द, सत्यव्रत के साथ कमरे में दाखिल हुए।
"बैट्ठो भय्या ! लालाजी ने बड़े प्रेम से सत्यव्रत को सम्बोधित करके कहा और चौधरी नत्थूसिंह और गनेशीलाल की ओर बारी-बारी से घूमकर बोले, "हाँ भय्या, पूछ लो जो कुछ पूछना होवै।"
पहले गनेशीलाल को ही पूछना पड़ा, क्योंकि उन्होंने ही सत्यव्रत के दुवारा इंटरव्यू का आग्रह किया था। सहसा कुछ सूझ न पड़ा तो सत्यव्रत की ओर मुंह करके,भाषा में जरा साहित्यिकता लाते हुए उन्होंने पूछा, "सुबह कै बजे उठते हो जी ?" "चार बजे।" सत्यव्रत ने उत्तर दिया। "फिर क्या करते हो?" "उठकर जंगल आदि के नित्य कर्म से निवृत्त होने के लिए एवं वायु-सेवन के लिए जाता हूँ और वहीं थोड़ा व्यायाम भी करता हूँ। घर आने पर सन्ध्या करता हूँ और रविवार के दिन यज्ञ। तदुपरान्त थोड़ा स्वाध्याय और घर का काम-काज देखता हूँ।" "प्याज खाते हो?" "जी नहीं। प्याज, लहसुन या इस तरह की अन्य वस्तुएँ हमारे घर नहीं खाई जातीं।" "ठीक है।" गनेशीलाल सन्तुष्ट होकर लालाजी की ओर देखने लगे। आगे पूछने के लिए उनके पास कोई प्रश्न न था।
लालाजी ने अब चौधरी नत्थूसिंह की ओर देखा। बाजी हाथ से जाते देख नत्थूसिंह ने सोचा, क्यों न बहती गंगा में हाथ धो लिए जाएँ कुछ प्रश्न पूछकर। कम-से-कम कहने को तो हो जाएगा कि इस आदमी को हमने योग्यता के आधार पर लिया है, और न्याय किया है। रही कोतवाल साहब की बात, उन्हें समझा दूंगा कि गनेशीलाल की बदमाशी के कारण ही असरार नहीं लिया गया। और यह सोचकर ही उनका मुँह प्रसन्नता से चमक उठा कि कोतवाल गनेशीलाल को कहाँ गच्चा देगा ! फिर गम्भीर होकर चौधरी साहब ने सत्यव्रत से पूछा, "एक अच्छे विद्यार्थी में क्या-क्या खूबियों होनी चाहिए, बता सकते हो?"
"चरित्र और अनुशासन।" सत्यव्रत ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया और फिर जैसे कुछ सोचकर विस्तार से समझाते हुए बोला, “चरित्र में सत्यप्रियता, बड़ों की आज्ञा का पालन करना, दया और प्रेम आदि सारी बातें सम्मिलित हैं। और अनुशासन में अध्ययन..."